January 19, 2012

कहानी - चोर
एक जेन साधक ध्यान में बैठा था। रात का वक्त था। एक चोर उसके घर में घुसा। साधक ने उसे देख लिया। चोर घबरा गया और बोला, मुझे अपना पैसा दे दो, नहीं तो जान से मार दूंगा। 

मुझे बेकार परेशान मत करो। साधक ने उसे डांटा। पैसा यहां अलमारी में है। चुपचाप ले लो और जाओ। 


चोर ने अलमारी खोली और पैसे उठा लिए। साधक ने उसे डांटा , सारे पैसे मत लो, कुछ पैसा दूसरों का भी है। कुछ घबराए, कुछ शरमाए चोर ने कुछ पैसा वापस रख दिया। और दबे पांव वहां से जाने लगा। साधक ने फिर डांटा, सलीका नहीं है। जब कोई कुछ दे तो उसका शुक्रिया अदा किया जाता है। 

शुक्रिया ! बड़ी मुश्किल से चोर के मुंह से निकला और वह वहां से भाग गया। अगले दिन संयोगवश चोर पकड़ा गया। जब राजा के सैनिकों ने उससे सारी बातें उगलवाईं तो वे उसे लेकर साधक के पास पहुंचे। उन्होंने साधक से कहा कि आप भी मुकदमा दर्ज कराइए। साधक ने कहा, इसने तो मेरा कुछ चुराया ही नहीं, फिर मुकदमा कैसा? मैंने इसे खुद कहा था कि पैसे ले लो। इसने पैसे लेकर मेरा शुक्रिया भी अदा किया। 

दूसरी चोरियों के लिए उसे जेल हुई। पर जेल पूरी करने के बाद वह सीधा जेन साधक के पास गया। और उसका शिष्य बन गया।